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Showing posts from December, 2008

न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता / ग़ालिब

न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता डुबोया मुझ को होने ने, न होता मैं तो क्या होता हुआ जब ग़म से यूँ बेहिस तो ग़म क्या सर के कटने का न होता गर जुदा तन से तो ज़ाँनों पर धरा होता हुई मुद्दत के "ग़ालिब" मर गया पर याद आता है वो हर एक बात पे कहना के यूँ होता तो क्या होता Cited from: http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title ,dated १९-१२-2008