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Showing posts from May, 2008

दिल को क्या हो गया ख़ुदा जाने / दाग़ देहलवी

दिल को क्या हो गया ख़ुदा जाने क्यों है ऐसा उदास क्या जाने कह दिया मैं ने हाल-ए-दिल is को तुम जानो या ख़ुदा जाने जानते जानते ही जानेगा मुझ में क्या है वो अभी क्या जाने तुम न पाओगे सादा दिल मुझ साजो तग़ाफ़ुल को भी हया जाने

टूटे हुए पर की बात / ज्ञान प्रकाश विवेक

कभी दीवार कभी दर की बात करता था वो अपने उज़ड़े हुए घर की बात करता था मैं ज़िक्र जब कभी करता था आसमानों का वो अपने टूटे हुए पर की बात करता था न थी लकीर कोई उसके हाथ पर यारो वो फिर भी अपने मुकद्दर की बात करता था जो एक हिरनी को जंगल में कर गया घायल हर इक शजर उसी नश्तर की बात करता था बस एक अश्क था मेरी उदास आंखों में जो मुझसे सात समंदर की बात करता था Cited from:" http://hi.literature.wikia.com/wiki , Dated:19-05-2008

मेरी आंखों की पुतली में/जयशंकर प्रसाद

मेरी आँखों की पुतली में तू बनकर प्रान समा जा रे! जिसके कन-कन में स्पन्दन हो, मन में मलयानिल चन्दन हो, करुणा का नव-अभिनन्दन हो वह जीवन गीत सुना जा रे! खिंच जाये अधर पर वह रेखा जिसमें अंकित हो मधु लेखा, जिसको वह विश्व करे देखा, वह स्मिति का चित्र बना जा रे ! Cited From: http://hi.literature.wikia.com/wiki/ ,Dated:०३-०५-2008