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भावना...काव्य मंजूषा

जीवन की, स्थूल आवश्यकताएँ बहुत कुछ हो सकतीं हैं, परन्तु सबकुछ नहीं, कुछ और भी होता है इनके अतिरिक्त, आगे बढ़ो, और वरण कर लो उस एक भावना का जो छलना नहीं, वितृष्णा नहीं, आत्म-प्रवंचना नहीं, वह तो बस पवित्र है , कोमल है, अनश्वर है, अद्भुत है, वह मात्र प्रेम है, और कुछ नहीं॥! लिंक: http://swapnamanjusha.blogspot.com/2011/04/blog-post.html