ये धूप किनारा शाम ढले मिलते हैं दोंनो वक्त जहाँ जो रात न दिन, जो आज न कल पल भर में अमर, पल भर में धुंआँ इस धूप किनारे, पल दो पल होठों की लपक, बाँहों की खनक ये मेल हमारा झूठ न सच क्यों रार करें, क्यों दोष धरें किस कारण झूठी बात करें जब तेरी समन्दर आँखों में इस शाम का सूरज डूबेगा सुख सोयेंगे घर-दर वाले और राही अपनी राह लेगा Cited from:http://hi.literature.wikia.com/wiki,dated, 25-07-2008
"नियामक" शब्द रुडयार्ड किपलिंग की कविता "If" के हिन्दी अनुवाद मे मुझे मिला था। यह कविता मुझे काफी अच्छी और प्रेरणा स्त्रोत लगी। तब से यह शब्द मेरी जिन्दगी का अहम् और चुनिन्दा शब्द बन गया है। मूल कविता यहाँ पर दी गई है उम्मीद है आपको भी पसंद आएगी, इस सेक्शन मे आप चुनिंदा कवियों ,लेखकों ,विचारको के विचार इस मुख पृष्ट पर पाएंगे। Copyright© Desh Raj Sirswal