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जब तेरी समन्दर आँखों में / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ये धूप किनारा शाम ढले
मिलते हैं दोंनो वक्त जहाँ
जो रात न दिन, जो आज न कल
पल भर में अमर, पल भर में धुंआँ
इस धूप किनारे, पल दो पल
होठों की लपक, बाँहों की खनक
ये मेल हमारा झूठ न सच
क्यों रार करें, क्यों दोष धरें
किस कारण झूठी बात करें
जब तेरी समन्दर आँखों में
इस शाम का सूरज डूबेगा
सुख सोयेंगे घर-दर वाले
और राही अपनी राह लेगा
Cited from:http://hi.literature.wikia.com/wiki,dated, 25-07-2008

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अज आखां वारिस शाह नू - अमृता प्रीतम

अज आखां वारिस शाह नू कितों कबरां विचो बोल ! ते अज किताब -ऐ -इश्क दा कोई अगला वर्का फोल ! इक रोई सी धी पंजाब दी तू लिख -लिख मारे वेन अज लखा धीयाँ रोंदिया तैनू वारिस शाह नू कहन उठ दर्मंदिया दिया दर्दीआ उठ तक अपना पंजाब ! अज बेले लास्सन विछियां ते लहू दी भरी चेनाब ! किसे ने पंजा पानीय विच दीत्ती ज़हिर रला ! ते उन्ह्ना पनिया ने धरत उन दित्ता पानी ला ! जित्थे वजदी फूक प्यार दी वे ओह वन्झ्ली गई गाछ रांझे दे सब वीर अज भूल गए उसदी जाच धरती ते लहू वसिया , क़ब्रण पयियाँ चोण प्रीत दियां शाहज़ादीआन् अज विच म्जारान्न रोण अज सब ‘कैदों ’ बन गए , हुस्न इश्क दे चोर अज किथों ल्यायिये लब्भ के वारिस शाह इक होर aaj आखां वारिस शाह नून कित्तों कबरां विचो बोल ! ते अज किताब -ऐ -इश्क दा कोई अगला वर्का फोल ! Cited From: http://www.folkpunjab.com/amrita-pritam/aj-akhan-waris-shah-noon/ Date:11-4-2008

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