कर चले हम फ़िदा जानो-तन साथियो अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो साँस थमती गई, नब्ज़ जमती गई फिर भी बढ़ते क़दम को न रुकने दिया कट गए सर हमारे तो कुछ ग़म नहीं सर हिमालय का हमने न झुकने दिया मरते-मरते रहा बाँकपन साथियो अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो ज़िंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर जान देने के रुत रोज़ आती नहीं हस्न और इश्क दोनों को रुस्वा करे वह जवानी जो खूँ में नहाती नहीं आज धरती बनी है दुलहन साथियो अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो राह कुर्बानियों की न वीरान हो तुम सजाते ही रहना नए काफ़िले फतह का जश्न इस जश्न के बाद है ज़िंदगी मौत से मिल रही है गले बांध लो अपने सर से कफ़न साथियो अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो खींच दो अपने खूँ से ज़मी पर लकीर इस तरफ आने पाए न रावण कोई तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे छू न पाए सीता का दामन कोई राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साथियो अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो Link: http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%95%E0%A4%B0_%E0%A4%9A%E0%A4%B2%E0%A5%87_%E0%A4%B9%E0%A4%AE_%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A4%BE_/_%E0%A4%95%E0%A5%88%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%...
"नियामक" शब्द रुडयार्ड किपलिंग की कविता "If" के हिन्दी अनुवाद मे मुझे मिला था। यह कविता मुझे काफी अच्छी और प्रेरणा स्त्रोत लगी। तब से यह शब्द मेरी जिन्दगी का अहम् और चुनिन्दा शब्द बन गया है। मूल कविता यहाँ पर दी गई है उम्मीद है आपको भी पसंद आएगी, इस सेक्शन मे आप चुनिंदा कवियों ,लेखकों ,विचारको के विचार इस मुख पृष्ट पर पाएंगे। Copyright© Desh Raj Sirswal