"हार कर रुकना नहीं ग़र तेरी मंजिल दूर है !
ठोकरें खाकर सम्हलना वक्त का दस्तूर है !
हौसले के सामने तक़दीर भी झुक जायेगी !
तू बदल सकता है क़िस्मत किसलिए मजबूर है !
...
आदमी की चाह हो तो खिलते है पत्थर में फूल !
कौन सी मंजिल है जो इस आदमी से दूर है !!!!!
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June 03,2013